नीलोफ़र की इस टिप्पणी से बहस के नये आयाम भले खुले लोगों को अपनी बहस और विवाद कला को निखारने का मौका मिला! लेकिन इस टिप्पणी से कहीं से नहीं लगता कि टिप्पणीकार के मन में स्त्रियों या दलितों के प्रति सहज संवेदना है।
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उन्हें वाद विवाद कला पर स्वामित्व प्राप्त कर लिया है, वे किसी विषय पर जोरदार भाषण दे सकते हैं, अनेक विषयों पर बोल सकते हैं, जैसे सम्प्रदियाकता, महिलाओं के सामन अधिकार (लिंगवाद), परमाणु शास्त्रों पर रोक, और ओजोन में आई खराबिओं पर, लेकिन जैसे ही वे मंच से उतरते हैं वे इस विषय के सम्बन्ध में परवाह करना बंद कर देते हैं जिस पर उन्हों ने अभी अभी वाद विवाद किया था ।....(4)